Spreadtalks Webteam: चंडीगढ़: Haryana Big News, हरियाणा में सीएम फ्लाइंग की टीम ने इसकी जांच का दायरा बढ़ा दिया है।
दरअसल, आयुष्मान भारत कार्ड के जरिए इलाज में बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है।
सीएम फ्लाइंग की टीम अब 3 साल तक के पुराने रिकॉर्ड की भी जांच करेगी।
कई मृतकों का ऑनलाइन रिकॉर्ड से मिलान किया जाना बाकी है।
पीजीआई में इनकी डिटेल मांगी जा रही है।
इस पूरे खेल में अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध होने के अलावा अन्य कर्मचारियों के भी शामिल होने की आशंका है.
क्योंकि मरीज की मौत के बाद उसके नाम से दवाओं का बिल बनाकर पैसा खपा लिया जाता था।
अकेले रोहतक जिले में कुल 2.6 लाख आयुष्मान कार्ड धारक हैं।
इनके इलाज के लिए निजी और सरकारी मिलाकर 38 केंद्र बनाए गए हैं।
कार्डधारियों में से 95 प्रतिशत कार्डधारियों का इलाज पीजीआई में होता है।
जिनके इलाज का बिल औसतन हर महीने 2 करोड़ से ज्यादा आता है।
दो माह पहले सीएम फ्लाइंग के आला अधिकारियों के आदेश पर पीजीआई में आयुष्मान भारत योजना के तहत इलाज के लिए फंड की जांच शुरू की गई थी.
इसमें पीजीआई की ओर से ब्योरा देने में आनाकानी की गई। इस पर तीन दिन पहले टीम खुद रिकार्ड लेने पहुंची थी।
इसमें टीम 250 मृतकों के इलाज का रिकॉर्ड खंगाल रही है। इनमें से 70 मृतक मरीजों की जानकारी नहीं मिल सकी है।
इसके अलावा पहले से प्राप्त शिकायतों का विवरण भी शामिल है। इसलिए टीम पहले डेढ़ साल के रिकॉर्ड की जगह अब 3 साल तक के रिकॉर्ड की जांच करेगी.
खेल करने के लिए रोगी की मृत्यु के 2 से 15 दिन बाद तक के बिल बनाए गए थे।
इसमें मरीज के इलाज के लिए जरूरी दवाएं बिल बनाकर बाहर से मंगवाई गई हैं। मरीज का कोई अटेंडर नहीं होने के कारण यह राशि अवशोषित हो गई।
वहीं, जांच टीम को मामले की अहम जानकारी देने के लिए पीजीआई के अधिकारी एक-दूसरे से परहेज कर रहे हैं। इस टालमटोल के कारण अभी तक पूरा रिकॉर्ड नहीं मिल सका है।
श्यामलाल बिल्डिंग के कर्मचारी भी आपस में बात टालने में लगे हैं। इसी रवैए के चलते अधिकारी भी टीम की जांच के निशाने पर हैं।
क्योंकि अधिकारियों की शह के बिना बिल पास नहीं हो सकते और उन्हें मरीज के भर्ती होने से लेकर मौत तक की पूरी जानकारी होती है.
इस खेल की शायद पीजीआई में जांच भी नहीं हुई होती, अगर मृतकों में से एक पीजीआई के डॉक्टर का रिश्तेदार नहीं होता।
क्योंकि उसे अपने रिश्तेदार की मौत की तारीख याद थी और संयोग से देखे गए पीजीआई के रिकॉर्ड में मौत की तारीख अलग दिखाई गई है.
इसमें इलाज के बिल भर्ती की अवधि से अधिक दिखाते पाए गए।
हैरानी की बात यह है कि अब तक टीम के संज्ञान में जितने भी अनियमितता के नाम सामने आए हैं, वे सभी ऐसे मरीज हैं, जिन्हें गंभीर हालत में पीजीआई में भर्ती कराया गया था.
इन मरीजों की मौत के बाद दवा व इलाज के नाम पर बिल बनाकर शासन से राशि प्राप्त की जाती थी।
बिलों के मुताबिक मरीजों की मौत की तारीख भी दिखाई गई है.